किसी खाली किताब के जैसी थी ये ज़िन्दगी ,
बिलकुल इसी पन्ने की तरह , खाली था दिल …
वक़्त की हवा चल रही थी , किताब के पन्ने पलट रहे थे ..
फिर उस हाथ ने एक पन्ने को थाम लिया ,
स्याह कलम से भर दिया उस कागज़ के टुकड़े को .
शब्दों को तराश कर , जज्बातों को समेत कर रंग दिया उस पन्ने को ..
एक मतलब मिल गया था ,
एक मकसद मिल गया था ,
वही खालीपन , वो अधूरापन जैसे हटता जा रहा था .
पर फिर से हवा चली ,
वो हाथ सिमट गए ,
स्याही बिखर गयी और शब्द खो गए .
फिर से वो पन्ने पलट गए
ज़िन्दगी फिर से खाली हो गयी , बेमतलब , बेमकसद
फिर से वो बेरंगी हो गयी .
लेकिन वो पन्ना , स्याही से रंग , लफ्जों से सजा
मौजूद है कहीं नीचे यादों में .
उन हाथों की महक अब भी सोंधती रहती है .
कहीं कागज़ की परतों के बीच
बहुत चाहा की फाड़ के फेंक दूँ उस पन्ने को
लेकिन एक उम्मीद है कि कभी तो वो हाथ बढेंगे
उन पन्नो को वापिस पलटेंगे , नरम उँगलियों से पड़ेंगे
उन अल्फाजों को जिन्हें कभी बड़ी शिद्दत से बुना था
सजाया था इस खाली पन्ने में …
ऐसा भी कभी हुआ है क्या ?? क्या पता ??
क्या पता हमे !! क्या पता तुम्हे ??
जानती है तो बस वो किताब और उसके वो खाली पन्ने ...